साहित्य और कविता ग़ज़लों के बिना ज़िन्दगी वीरान है
मो. अनस सिद्दीकी
साहित्य और कविता ग़ज़लों के बिना ज़िन्दगी वीरान है, ऐसा लगता है जैसे हम बस जी रहे है महसूस नहीं कर रहे, संवेदनाएं खत्म हो गयी है और प्यार तो जैसे है ही नहीं। साहित्य हमारे जीवन का वो एहसास है जिसके बिना शायद जीवन ही नहीं है यह हमारे जीवन का हमारे समाज का हीलिंग पॉइंट है जिसके बिना हम खुश नहीं रह सकते, यह कहना था वियतनाम के राजदूत एच.ई. पान सेन चाउ का जिन्होंने मारवाह स्टूडियो में पांचवें ग्लोबल लिटरेरी फेस्टिवल का उद्घाटन किया। इस अवसर पर पेरू के राजदूत एच.ई. कार्लोस पोलो, कोमोरोस के महावाणिज्य दूत एच.ई. के. एल. गंजू, बॉलीवुड स्क्रीन राइटर कमलेश पाण्डेय और कवि लिली स्वरन भी उपस्थित हुए।
एएएफटी यूनिवर्सिटी के चांसलर संदीप मारवाह ने इन सभी का स्वागत करते हुए कहा कि आज हम लिटरेरी फेस्टिवल के पांचवे पड़ाव पर पहुँच गए है और मुझे पूरी उम्मीद है की इस तीन दिवसीय फेस्टिवल में हमारे छात्रों को साहित्य के बारे में बहुत कुछ सीखने और जानने को मिलेगा। इस अवसर पर चालबाज़, तेज़ाब, रंग दे बसंती, दिल, खलनायक जैसी सुपरहिट फिल्मों की फिल्मोग्राफी लिखने वाले राइटर कमलेश पाण्डेय ने बताया कि आज का साहित्य केवल लेखक और कवियों का साहित्य नहीं रह गया है बल्कि इसके अंदर वो लोग भी आ गए है जिन्होंने साहित्य पढ़ा नहीं है लेकिन लिखा ज़रूर है, मैं बताना चाहूंगा की ज्यादातर जो मुझे नयी रचना या अच्छी कहानीकार मिलते है वो कहीं न कहीं डॉक्टर, बैंकर या इंजिनयर होते है जो अपने दिल की सुनते है और वही लिखते है, मेरे ख्याल से वही लेखक भी है। के. एल. गंजू ने कहा की साहित्य दिल से लिखा जाता है और जो दूसरे के दिल तक पहुँचता है और मेरे साथ तो ऐसा है की अगर कोई लाइन मुझे अच्छी लग जाती है तो मैं उसे डायरी में लिखता हूँ और उसे यदा कदा पढता रहता हूँ।
कार्लोस पोलो ने पेरू के मशहूर कवि की एक कविता भी छात्रों को सुनाई और कहा कि मैं शायद लिखने में इतना माहिर नहीं हूँ लेकिन पढ़ना मेरी हॉबी कह सकते है, यहाँ आकर मुझे बहुत कुछ सीखने को मिला। लिली स्वरन ने कहा कि आज की आधुनिक कविता में आपके पास शब्दों की कमी नहीं है आप हिंदी उर्दू पंजाबी किसी भी भाषा के शब्दों को अपनी कविता में इस्तेमाल कर सकते है।
इस अवसर पर राम तुमुलुरी की बुक अर्थ, एशेज एंड कॉंग्रएन्स का विमोचन भी किया गया, साथ ही छात्रों ने नुक्कड़ नाटिका भी प्रस्तुत की जिसका शीर्षक था लड़कियों को भी जीने का हक़ है।